Consultation in Corona Period-2

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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया 


"सर, बहुत जरूरी काम था इसलिए मैंने आपको इस समय फोन किया है. हम लोग महाराष्ट्र से बिहार लौट रहे हैं पैदल और हमारे 10 साल के बच्चे को मिर्गी की बीमारी है। जब से हम लोग वहां से निकले हैं बच्चे को बार बार मिर्गी के दौरे आ रहे हैं और उसकी तबीयत बिगड़ती जा रही है. आप क्या कोई दवा बता सकते हैं?"


 उधर से आ रही आवाज में इतना अधिक दर्द था कि आधी नींद में होने के बावजूद मैं क्रोध नहीं कर पाया और न ही यह कह पाया कि आप अपॉइंटमेंट लेकर और फीस जमा करके बात करें.


 मैंने बस इतना ही कहा कि मैं डॉक्टर नहीं हूं. आप किसी डॉक्टर से संपर्क करें. वही आपको दवा दे सकते हैं


उधर से आवाज आई कि अभी लॉकडाउन लगा हुआ है और हम लोग बीच रास्ते में हैं. पूरा शहर बंद है. एक भी डॉक्टर उपलब्ध नहीं है. मुझे पता है कि आप डॉक्टर नहीं है पर आप कुछ तो बता सकते हैं.


मैंने उनकी लोकेशन पूछी और अपने महाराष्ट्र के संपर्कों के माध्यम से उनकी मदद करनी चाहिए पर इसमें असफल रहा।


 बच्चे की हालत के बारे में विस्तार से जानकारी ली तो इस बात का आभास हुआ कि उसे जल्द से जल्द मदद की जरूरत है।


 दवा दुकानें बंद थी इसलिए अपने डॉक्टर मित्रों का अनुमोदन उन तक पहुंचाना बेकार था। आखिर मैंने मदद करने का फैसला किया।


वे उस समय रेल की पटरी के किनारे किनारे चल रहे थे।


मैंने उनसे कहा कि आपके आसपास जितनी भी वनस्पतियां उग रही है उसकी तस्वीर मुझे खींचकर भेजते रहें ताकि मैं उनके बालक की समस्या के लिए उपयुक्त वनस्पति का अनुमोदन कर सकूं।


 उन्होंने मेरी बात मानी और लगातार तस्वीरें भेजते रहे।


 आखिर 25 वी तस्वीर काम की निकली और मैंने उनसे कहा कि आप इस वनस्पति की जड़ का ताजा रस निकाल लें और सुबह शाम बालक की नाक में दो-दो बूंद डालते रहें।


 उन्होंने मेरी बात मानी और धीरे-धीरे बालक की हालत में सुधार होने लगा। 3 दिनों के अंदर उसकी समस्या का समाधान हो गया।


20 वर्षों के बाद कोंकण के पारंपरिक चिकित्सकों से मिला यह दुर्लभ ज्ञान इस तरह काम आया।


सर्वाधिकार सुरक्षित

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